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चमोली में फिर बढ़ा खतरा: Landslide in Chamoli से जंगल की संपदा हुई नष्ट

Landslide in Chamoli : उत्तराखंड के चमोली जिले में हाल ही में ए लैंडस्लाइड और जमीन धसने की घटनाओं ने कई हेक्टेयर जंगल को तहस-नहस कर दिया है। बिनसर पहाड़ी क्षेत्र से शुरू हुआ या मालवा नंदा नगर के दुर्गा और कुंदरी गांव तक पहुंच चुका है इस दौरान बड़ी संख्या में पेड़ अपनी जड़ों समेत उखाड़ कर गिर गए और नाले के बहाव में वन संपदा बर्बाद हो गई।

पहले भी झेल चुका है इलाका बड़ी आपदा

चमोली वही जिला है जिसे 2021 के समय रैनी आपदा देखी थी। उस समय ऋषि गंगा के बहाव ने न केवल गांव को प्रभावित किया बल्कि विशाल वन क्षेत्र को भी मलवे में समा दिया। अब एक बार फिर से लैंडस्लाइड चमोली में आ गया है जिस कारण लोगों की चिंता बढ़ चुकी है।

स्थानीय लोगों पर असर

वनों को नुकसान पहुंचाने का सीधा असर स्थानीय ग्रामीण लोगों पर पड़ता है। पेड़ पौधे न केवल पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखते हैं बल्कि गांव के लिए जल स्रोत और मिट्टी की मजबूती भी प्रदान करते हैं। लैंडस्लाइड होने के कारण कृषि की भूमि पर मिट्टी का कटाव बढ़ता जाता है और जलधाराएं गाद से भर जाती हैं। जिससे खेती किसानी और पेयजल दोनों प्रभावित होते हैं।

पर्यावरणीय चुनौतियाँ

लैंडस्लाइड होने के कारण पहाड़ों की भूमि स्थिरता पर गंभीर खतरा होता है विशेषज्ञों का कहना है कि अनियंत्रित निर्माण कार्य होने से और सड़कों की कटाई और वन कटाव इन आपदाओं को तीव्रता से बढ़ाते हैं ऐसे में जरूरी है कि सरकार और वन विभाग दोनों मिलकर ठोस कदम उठाएं।

प्रशासनिक तैयारी और आगे की राह

वन विभाग में प्रभावित क्षेत्र का सर्वे शुरू कर दिया है इसके साथ ही विशेषज्ञ भूगर्भीय अध्ययन कर रहे हैं ताकि भविष्य में इस तरह की आपदाओं से बचा जा सके। पहाड़ी इलाकों के ढलान को स्थिर करने के लिए मिट्टी संरक्षण, स्थानीय पेड़ों का पूर्ण रोपण और निगरानी तंत्र को मजबूत करने की बहुत जरूरत है।

उत्तराखंड के चमोली में लिए ताजा घटना एक बार फिर से यह याद दिलाती है कि पहाड़ एक पारिस्थितिक तंत्र का हिस्सा है अगर समय रहते सतत विकास पर ध्यान नहीं दिया जाता है तो ऐसी आपदाएं बार-बार आकर पर्यावरण और इंसानी जीवन के लिए खतरा बनती है। Landslide in Chamoli केवल एक स्थानीय समस्या ही नहीं है बल्कि उत्तराखंड के और हिमालय के पारिस्थितिक तंत्र के लिए एक चेतावनी है।

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