उत्तराखंड लोकसभा चुनाव 2024 पर एक नजर
उत्तराखंड में 5 लोकसभा सीटों पर चुनाव संपन्न होने के बाद, राजनैतिक सरगर्मी तो खत्म हो गयी है परन्तु पार्टियों के अंदरखाने परिणाम को लेकर सरगरमी बरकरार है। फिर भी जिस प्रकार चुनाव को लेकर उदासीनता उत्तराखंड ने दिखाई है उससे तस्वीर लगभग साफ ही है!
जिस आक्रामक रूप से गढ़वाल सीट पर गणेश गोदियाल ने चुनाव लड़ा उससे एक परसेप्शन तो अवश्य क्रिएट हुआ है की भाजपा को और उसकी राजनीतिक सोच को हराया जा सकता है, इसका फायदा बॉबी पंवार को भी थोड़ा बहुत ही सही परन्तु अवश्य हुआ है। परिणाम से इतर देखें तो गणेश गोदियाल और बॉबी पंवार ने जनता को और अधिक विकल्प तलाशने का मौका भी दिया है।
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जहां एक तरफ भाजपा/संघ की पूर्ण मिशनरी बनाम गणेश गोदियाल का उत्तराखंड लोकसभा चुनाव लड़ा गया वहां गणेश गोदियाल के लिए जो प्रेम गढ़वाल ने दिखाया है वो क्या विजयी वोटों में convert हो पायेगा ? या फिर गढ़वाल प्रेम तो गोदियाल से करेगा परन्तु अंत में यह बोलकर की “अब्बा नहीं मानेंगे” बोलकर वोट्स की जयमाला बलूनी के गले में दाल देगा !मेरा अपना आंकलन तो यही कहता है की बलूनी जी के लिए कोई भी अतिरिक्त उत्साह गढ़वाल की जनता ने नहीं दिखाया है बलूनी जी भी मोदी नाम की नैय्या के भरोसे वैतरणी पार करेंगे ?
उत्तराखंड लोकसभा चुनाव
दूसरी तरफ बॉबी पंवार जैसा युवा है जिसने प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार पर आक्रामक होकर चुनाव लड़ा और कांग्रेस ने भी लगभग बॉबी को वाक ओवर ही दे दिया है, जोत सिंह गुंसोला जी की भूमिका चुनाव जीतने से अधिक वोट कटुवा की दिखाई दे रही है पर फिर भी हर पार्टी का अपना कैडर होता है कांग्रेस का भी होगा जिसका फायदा निश्चित रूप से ही गुंसोला जी को मिलेगा । महारानी के खिलाफ बहुत सी बातें जाती है जैसा की उनका जनता से संपर्क न होना, क्षेत्र के प्रति उनकी उदासीनता और ऐसी दर्जनों बाते हैं। पर एक संगठन के रूप में भाजपा बहुत मजबूत है दूसरी तरफ बॉबी के लिए जो सबसे बड़ी परेशानी का विषय रहा होगा वह यह कि हर बूथ पर अपना एक रिप्रेजेन्टेटिव खड़ा करना (कांग्रेस का संगठन होने के बाद भी सारे बूथ पर बूथ रेप्रेसेंटेटिव नहीं थे )।
जीत पर संशय
इस बात को नकारा नहीं जा सकता की बॉबी ने बहुत मजबूती से चुनाव लड़ा है और भविष्य में वह उत्तराखंड को एक बचत अच्छा नेतृत्व दे सकता है, पर इस बार विजयी हो जाएगा, इस पर टिपण्णी करना थोड़ी जल्दबाजी होगी। जो सीट चौंका सकती है वह सीट अल्मोड़ा है जहां चुनाव बहुत ही silently लड़ा गया है और असमंजस की स्थिति बनी हुई है यदि भाजपा अल्मोड़ा में हार जाती है तो इसमें आश्चर्य होना भी नहीं चाहिए।
खैर जो भी हो हार / जीत से इतर जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वह यह है की यदि विपक्ष को उत्तराखंड में बने रहना है तो उसे चुनाव के समय ही नहीं अपितु हर समय एक्टिव होना पड़ेगा, अंकिता भंडारी केस हो या भू कानून/मूल निवास इस पर खुलकर सामने आना होगा क्योंकि देश में जिस हिसाब से राजनीति रुख बदल रही है भविष्य में क्षेत्रीय पहचान एक मुद्दा होने वाला है।